मन था उदास...
मन था उदास...
बड़ी हसरतों से निगाहें दरवाजे पर थीं...
सहसा कुछ खटका सा हुआ ।
उल्लसित मन से मैं दरवाजे की ओर बढ़ी.....कि
लेकिन यह क्या।
वह मन का भ्रम था;
दिल बैठने सा लगा
बुझे मन से लौट ही रही थी...
कि सहसा एक आवाज आई
"भाभी "....!!!
मन की वीणा झंकृत हो उठी ।
मन मयूर नाच उठा ।
यह कोई स्वप्न नहीं
तुम साक्षात पधार चुकी थीं ।
धन्य हो भगवन धन्य
अब मन नहीं था उदास
माहौल हो गया था ख़ुशगवार
मन मृदंग के बज रहे थे तार
वह आ चुकी थी ।
सचमुच वो आ चुकी थी...।
यह कविता नहीं.... कामवाली बाई के चार दिन की छुट्टी के बाद काम पर आने की ख़ुशी में एक गृहिणी के हृदय से निकले उदगार हैं । चाहें तो फिर से पढ़ लें....।
बड़ी हसरतों से निगाहें दरवाजे पर थीं...
सहसा कुछ खटका सा हुआ ।
उल्लसित मन से मैं दरवाजे की ओर बढ़ी.....कि
लेकिन यह क्या।
वह मन का भ्रम था;
दिल बैठने सा लगा
बुझे मन से लौट ही रही थी...
कि सहसा एक आवाज आई
"भाभी "....!!!
मन की वीणा झंकृत हो उठी ।
मन मयूर नाच उठा ।
यह कोई स्वप्न नहीं
तुम साक्षात पधार चुकी थीं ।
धन्य हो भगवन धन्य
अब मन नहीं था उदास
माहौल हो गया था ख़ुशगवार
मन मृदंग के बज रहे थे तार
वह आ चुकी थी ।
सचमुच वो आ चुकी थी...।
यह कविता नहीं.... कामवाली बाई के चार दिन की छुट्टी के बाद काम पर आने की ख़ुशी में एक गृहिणी के हृदय से निकले उदगार हैं । चाहें तो फिर से पढ़ लें....।
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